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May 14, 2025 2:49 pm

पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी, मीडिया रिपोर्ट पर भी सवाल

supreeme court of india

नई दिल्ली | 21 अप्रैल 2025, सोमवार

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में वक्फ कानून के विरोध में भड़की हिंसा के बाद मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच चुका है। 11-12 अप्रैल को हुई इस हिंसा में तीन लोगों की जान चली गई थी, सैकड़ों घायल हुए और दर्जनों परिवारों ने पलायन कर दिया। इसी मुद्दे पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने बेहद तल्ख टिप्पणी करते हुए याचिकाकर्ता से सीधा सवाल किया – “क्या आप चाहते हैं कि हम राष्ट्रपति को आदेश दें?”


🧑‍⚖️ सुप्रीम कोर्ट का तीखा रुख: अधिकार क्षेत्र से बाहर नहीं जाएंगे

सुप्रीम कोर्ट की दो अलग-अलग पीठों ने आज मुर्शिदाबाद हिंसा से जुड़ी दो याचिकाओं पर सुनवाई की। जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ए.जी. मसीह की बेंच ने पैरामिलिट्री फोर्स तैनाती और राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग पर कोई आदेश जारी करने से इनकार कर दिया।

जस्टिस गवई, जो अगले महीने मुख्य न्यायाधीश बनने वाले हैं, ने पूछा –

“क्या हम राष्ट्रपति को आदेश दें कि वे शासन लागू करें? इस तरह के निर्णय कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, हम न्यायपालिका हैं।”


🗣️ मीडिया रिपोर्ट के आधार पर दावा, कोर्ट ने किया खारिज

एक अन्य याचिका की सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत की बेंच में हुई, जिसमें वकील ने दावा किया कि मुर्शिदाबाद हिंसा के बाद लोग पलायन कर रहे हैं। कोर्ट ने इस पर सवाल उठाया कि

“आपके इस दावे का आधार क्या है? क्या आपने खुद जांच की है या सिर्फ मीडिया रिपोर्ट देखी है?”

वकील ने स्वीकार किया कि जानकारी सिर्फ मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित थी। इस पर कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि मीडिया स्रोतों को बिना पुष्टि के तथ्यों के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।


🔥 क्या हुआ था मुर्शिदाबाद में?

11-12 अप्रैल को वक्फ संशोधन कानून 2025 के खिलाफ निकाले गए विरोध प्रदर्शन अचानक हिंसक हो गए।

  • गाड़ियां जला दी गईं
  • घरों और दुकानों में तोड़फोड़ हुई
  • महिलाओं और बच्चों को छुपकर रातें बितानी पड़ीं
  • और 3 लोगों की मौत हो गई

भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को भारी मशक्कत करनी पड़ी।
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए इलाके में 17 केंद्रीय बलों की कंपनियां तैनात की गई हैं।


🧭 हाईकोर्ट का सुझाव – दौरा करें NHRC और विधिक सेवा प्राधिकरण

कलकत्ता हाईकोर्ट ने हिंसा की स्थिति को देखते हुए एक फैक्ट फाइंडिंग टीम बनाने का सुझाव दिया है।
इसमें शामिल होंगे:

  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) का एक सदस्य
  • पश्चिम बंगाल राज्य मानवाधिकार आयोग का एक सदस्य
  • राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का एक सदस्य

17 अप्रैल को हाईकोर्ट ने केंद्रीय बलों की तैनाती पर आदेश सुरक्षित रख लिया है।
विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने कोर्ट से अपील की है कि विस्थापित परिवारों को फिर से बसाने के निर्देश दिए जाएं।


👩‍⚖️ NCW की टीम पहुँची ज़मीनी हकीकत जानने

राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की अध्यक्ष विजया रहाटकर खुद मुर्शिदाबाद पहुंचीं। उन्होंने दंगा प्रभावित इलाकों का निरीक्षण किया और कहा कि

“स्थिति बेहद चिंताजनक है, महिलाओं में डर का माहौल है।”

NCW जल्द ही केंद्र सरकार और राज्य प्रशासन को रिपोर्ट सौंपेगी, ताकि महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।


🕌 AIMPLB का बड़ा ऐलान – 87 दिन का ‘वक्फ बचाव अभियान’

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने केंद्र सरकार के वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ 11 अप्रैल से 87 दिन तक चलने वाला आंदोलन शुरू कर दिया है।

इस अभियान में –

  • 1 करोड़ लोगों के हस्ताक्षर लिए जाएंगे
  • ये हस्ताक्षर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपे जाएंगे
  • इसके बाद अगला चरण तय होगा

AIMPLB का दावा है कि नया कानून वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा पर सीधा हमला है।


⚖️ सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून की सुनवाई जारी

वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट में 70 से ज्यादा याचिकाएं दायर की गई थीं। कोर्ट ने इनकी संख्या घटाकर 5 प्रतिनिधि याचिकाएं तय की हैं, जिन पर सुनवाई जारी है।

महत्वपूर्ण निर्देश:

  1. सरकार 7 दिन में जवाब दाखिल करे
  2. याचिकाकर्ता 5 दिन में प्रत्युत्तर दें
  3. तब तक वक्फ संपत्तियों पर यथास्थिति बनी रहे

अगली सुनवाई 5 मई 2025, दोपहर 2 बजे होगी।


🧩 सवाल जो अभी बाकी हैं…

  • क्या मुर्शिदाबाद में कानून-व्यवस्था पूरी तरह बहाल हो पाई है?
  • क्या मीडिया रिपोर्टों के आधार पर कोर्ट में बड़ी बातें रखी जा सकती हैं?
  • क्या वक्फ कानून का विरोध राजनीति से प्रेरित है या एक व्यापक समुदाय की चिंता?

इन सवालों का जवाब आने वाले हफ्तों में साफ होगा।


📌 निष्कर्ष:
मुर्शिदाबाद हिंसा अब सिर्फ राज्य की घटना नहीं रही, यह राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बन चुकी है। सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट, महिला आयोग से लेकर सियासी दल और धार्मिक संगठन – सभी इस पर अपनी भूमिका निभा रहे हैं। न्यायपालिका के संतुलित रुख ने साफ कर दिया है कि अधिकार क्षेत्र का सम्मान जरूरी है, लेकिन आम नागरिकों की सुरक्षा और न्याय उतना ही अनिवार्य।

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