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March 23, 2025 6:58 am

परीक्षा में फेल होने के डर से छात्रों ने चुराई कॉपियां, कुएं में फेंकी, मामला दर्ज

मंदसौर, 2 मार्च: मंदसौर जिले के खड़ावदा स्कूल में एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जहां 11वीं कक्षा के चार छात्रों ने परीक्षा में फेल होने के डर से उत्तरपुस्तिकाएं चोरी कर लीं। लेकिन जब उन्हें पता चला कि ये कॉपियां उनके स्कूल की नहीं बल्कि सीएम राइज विद्यालय चंदवासा की हैं, तो घबराकर उन्होंने इन्हें कुएं में फेंक दिया। यह घटना शिक्षा प्रणाली में बढ़ते तनाव और दबाव को उजागर करती है।

कैसे हुआ पूरा घटनाक्रम?

यह घटना 27 फरवरी की रात की है, जब छात्रों ने शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय खड़ावदा के परीक्षा विभाग में खिड़की के वेंटिलेशन से घुसकर चोरी की वारदात को अंजाम दिया। चोरों ने न केवल परीक्षा की उत्तरपुस्तिकाएं, बल्कि कंप्यूटर के की-बोर्ड, मॉनिटर और अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामान भी चुरा लिया।

गलत कॉपियां मिलने पर कुएं में फेंका

जब छात्रों ने चोरी की गई कॉपियों को देखा तो वे हैरान रह गए क्योंकि वे उनके स्कूल की नहीं बल्कि सीएम राइज विद्यालय चंदवासा की थीं। अपनी पहचान छिपाने और पकड़े जाने के डर से, उन्होंने सारी कॉपियां कुएं में फेंक दीं।

पुलिस ने चार नाबालिगों पर दर्ज किया केस

28 फरवरी को स्कूल प्रभारी प्राचार्य ने गरोठ पुलिस थाना में चोरी की शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने जांच करते हुए चार नाबालिग छात्रों को पकड़ लिया और उनके खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। पुलिस की प्रारंभिक जांच में यह सामने आया कि छात्रों ने केवल परीक्षा के डर से यह कदम उठाया था, न कि किसी अन्य आपराधिक मकसद से।

छात्रों के परिवार और शिक्षकों की प्रतिक्रिया

जब पुलिस ने छात्रों के माता-पिता को इस घटना की जानकारी दी, तो वे बेहद हैरान रह गए। उनके अनुसार, उनके बच्चे कभी इस तरह की हरकत नहीं कर सकते थे, लेकिन परीक्षा का डर और असफलता का तनाव उनके इस फैसले के पीछे मुख्य कारण रहा। वहीं, स्कूल के शिक्षकों ने भी इस घटना पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि परीक्षा के तनाव को कम करने के लिए छात्रों को मानसिक रूप से तैयार करने की जरूरत है।

शिक्षा पर उठते सवाल

इस घटना ने न केवल सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि शिक्षा प्रणाली में परीक्षा के दबाव का भी खुलासा किया है। परीक्षा में असफल होने का डर इतना बड़ा हो सकता है कि छात्र इस तरह के कदम उठाने के लिए मजबूर हो जाएं, यह सोचने वाली बात है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि छात्रों पर परीक्षा को लेकर बहुत अधिक मानसिक दबाव डाला जाता है, जिससे वे गलत फैसले लेने पर मजबूर हो जाते हैं।

इस तरह की घटनाओं के मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारण

मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञों का कहना है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में नंबर और ग्रेड को इतनी अधिक प्राथमिकता दी जाती है कि छात्र असफलता से डरने लगते हैं। कई बार, माता-पिता और समाज की अपेक्षाएं भी इस डर को और बढ़ा देती हैं। यदि छात्रों को असफलता से निपटने के लिए मानसिक रूप से तैयार किया जाए, तो इस तरह की घटनाओं को रोका जा सकता है।

स्थानीय प्रशासन और शिक्षा विभाग की प्रतिक्रिया

इस घटना के बाद जिला शिक्षा अधिकारी ने सभी स्कूलों को निर्देश दिए हैं कि वे परीक्षा के दौरान सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करें और परीक्षा से पहले छात्रों की काउंसलिंग करें। स्कूलों को यह भी सलाह दी गई है कि वे छात्रों को तनाव से निपटने के तरीके सिखाएं और उनके आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए नियमित कार्यशालाएं आयोजित करें।

भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के उपाय

शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

  1. छात्रों की काउंसलिंग – परीक्षा से पहले छात्रों को तनाव से निपटने की ट्रेनिंग दी जाए।
  2. अभिभावकों की भूमिका – माता-पिता को बच्चों पर अत्यधिक दबाव डालने से बचना चाहिए और उन्हें समझाना चाहिए कि असफलता भी सीखने का हिस्सा है।
  3. शिक्षकों का मार्गदर्शन – शिक्षकों को चाहिए कि वे छात्रों को केवल नंबर और ग्रेड के आधार पर न आंकें, बल्कि उनकी क्षमता और मेहनत को भी महत्व दें।
  4. सुरक्षा व्यवस्था – स्कूलों में सुरक्षा के इंतजाम मजबूत किए जाएं ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाएं न हों।

पुलिस का बयान

गरोठ पुलिस के अनुसार, मामले की जांच जारी है और चोरी किए गए अन्य सामान की बरामदगी के प्रयास किए जा रहे हैं। साथ ही, छात्रों के माता-पिता को भी इस घटना की जानकारी दी गई है। पुलिस ने इस मामले को एक गंभीर सामाजिक मुद्दे के रूप में देखा है और शिक्षकों व अभिभावकों को छात्रों पर मानसिक दबाव न डालने की सलाह दी है।

यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या परीक्षा का दबाव हमारे बच्चों पर इतना अधिक हो गया है कि वे अपराध की ओर बढ़ने लगे हैं? हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि शिक्षा केवल किताबों तक सीमित न रहे, बल्कि बच्चों के मानसिक और भावनात्मक विकास में भी सहायक बने।

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