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July 20, 2025 8:29 am

1975 का आपातकाल: संविधान, राजनीति और नागरिक अधिकारों पर सबसे बड़ा हमला

नई दिल्ली, 25 जून 2025 — आज से 50 वर्ष पहले, 25 जून 1975 को भारत में एक ऐसा फैसला लिया गया जिसने देश की लोकतांत्रिक नींव को झकझोर कर रख दिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा घोषित आपातकाल (Emergency) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के अंतर्गत लागू किया गया, जो 21 मार्च 1977 तक चला। यह दौर भारत के इतिहास में न केवल एक राजनीतिक मोड़ था, बल्कि संवैधानिक, कानूनी और मानवीय दृष्टि से भी सबसे विवादास्पद समय रहा।


आपातकाल की पृष्ठभूमि: न्यायिक फैसले और राजनीतिक आंदोलन

12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी को 1971 के लोकसभा चुनाव में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का दोषी पाया और उन्हें चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराया। यह याचिका समाजवादी नेता राज नारायण ने दायर की थी। इस फैसले से देश में राजनीतिक संकट गहरा गया और प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग तेज हो गई। उसी पृष्ठभूमि में, 25 जून की रात को “आंतरिक अशांति” के आधार पर आपातकाल की घोषणा कर दी गई।


कानूनी बदलाव और मौलिक अधिकारों का निलंबन

आपातकाल लागू होते ही केंद्र सरकार को असीमित शक्तियाँ मिल गईं।

  • 27 जून 1975 को अनुच्छेद 358 और 359 के अंतर्गत अनुच्छेद 14, 19, 21 और 22 जैसे मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए।
  • नागरिकों को हिरासत, स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से वंचित कर दिया गया।
  • जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मोरारजी देसाई जैसे विपक्षी नेता गिरफ्तार कर लिए गए।

प्रेस सेंसरशिप: अभिव्यक्ति की आज़ादी पर बंदिश

26 जून 1975 से पूरे देश में पूर्व-सेंसरशिप लागू कर दी गई।

  • अखबारों को समाचार और संपादकीय छापने से पहले सरकार से मंजूरी लेनी पड़ती थी।
  • विदेशी संवाददाताओं के संदेशों और फिल्मों तक पर पाबंदी लगा दी गई।
  • फरवरी 1976 में चार प्रमुख समाचार एजेंसियों को मिलाकर एक संस्था बनाई गई जिसका नाम ‘समाचार’ रखा गया।
  • भारतीय प्रेस परिषद को भंग कर दिया गया।

संविधान में विवादास्पद संशोधन

आपातकाल के दौरान कई संविधान संशोधन किए गए जिनका लक्ष्य सरकार की आलोचना और न्यायिक जांच से बचना था:

  • 38वां संशोधन: आपातकाल की न्यायिक समीक्षा पर रोक।
  • 39वां संशोधन: प्रधानमंत्री के चुनाव को न्यायालय के अधिकार से बाहर किया गया।
  • 42वां संशोधन: केंद्र सरकार की शक्तियाँ बढ़ाई गईं, संसद का कार्यकाल 5 से 6 वर्ष किया गया और न्यायपालिका के अधिकार सीमित किए गए।

जबरन नसबंदी अभियान: मानवाधिकारों का उल्लंघन

आपातकाल के दौरान नसबंदी कार्यक्रम बेहद विवादास्पद साबित हुआ।

  • 1975-77 के बीच 1.07 करोड़ नसबंदी ऑपरेशन हुए।
  • कई राज्यों में राशन, स्वास्थ्य सेवा और नौकरी जैसी सेवाओं को नसबंदी से जोड़ दिया गया।
  • शाह आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, इनमें 1,774 मौतें और 548 अविवाहित व्यक्तियों के ऑपरेशन की शिकायतें दर्ज हुईं।

शाह आयोग की रिपोर्ट: दमन की भयावहता का खुलासा

1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद न्यायमूर्ति जे.सी. शाह के नेतृत्व में शाह आयोग गठित किया गया। आयोग की रिपोर्टों (1978-79) में बताया गया:

  • 35,000 से अधिक लोग बिना मुकदमे के जेल में बंद किए गए।
  • 25,962 सरकारी कर्मचारियों को समय से पहले रिटायर किया गया।
  • दिल्ली के कई समाचार पत्रों की बिजली आपूर्ति काट दी गई।
  • प्रेस को ‘मित्र’, ‘तटस्थ’ और ‘शत्रु’ श्रेणियों में विभाजित किया गया।

आपातकाल का समापन और लोकतंत्र की वापसी

आपातकाल 21 मार्च 1977 को समाप्त हुआ।

1975 का आपातकाल भारत के इतिहास का वह अध्याय है जिसने बताया कि लोकतंत्र की रक्षा सतर्कता और संवैधानिक मूल्यों की दृढ़ता से ही संभव है।
आज जब हम इस ऐतिहासिक घटना के 50 वर्ष पूरे होने पर पीछे मुड़कर देखते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि संविधान, न्यायपालिका, मीडिया और नागरिक स्वतंत्रता जैसे संस्थानों को कमजोर करना, किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए कितना खतरनाक हो सकता है।

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