
न्यूयॉर्क (kailash vishwakarma)

अमेरिका और साउथ अफ्रीका के राष्ट्रपतियों के बीच एक अहम मुलाकात उस वक्त तनावपूर्ण बन गई जब अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने साउथ अफ्रीकी राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा पर गोरे किसानों के नरसंहार को लेकर तीखा आरोप जड़ दिया। व्हाइट हाउस के ओवल ऑफिस में हुई इस मुलाकात के दौरान दोनों नेताओं के बीच काफी गरमागरम बहस देखने को मिली, जिसमें मीडिया भी मौजूद था।

ट्रम्प ने वीडियो और रिपोर्ट्स से किया हमला
बैठक की शुरुआत तो हल्के-फुल्के अंदाज में हुई थी, जहां गोल्फ से लेकर व्यापारिक समझौतों तक पर चर्चा हो रही थी। लेकिन माहौल तब बदल गया जब ट्रम्प ने अचानक कमरे की लाइट बंद कर एक वीडियो चलाने को कहा। वीडियो में एक अश्वेत व्यक्ति को गोरे लोगों के खिलाफ भाषण देते दिखाया गया। इसके बाद ट्रम्प ने रामफोसा को कुछ न्यूज रिपोर्ट्स और तस्वीरें भी दिखाईं, जिनमें कथित तौर पर गोरे किसानों की हत्या का जिक्र था।
ट्रम्प ने कहा, “यह वीडियो हजारों गोरे किसानों की कब्रें दिखाता है। ये नरसंहार है, और हमें इसे रोकना होगा। अमेरिका में शरण मांग रहे किसानों को हम नजरअंदाज नहीं कर सकते।”
रामफोसा ने दिया संयमित जवाब, बोले- “हम सभी नस्लों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध”
ट्रम्प के आरोपों का जवाब देते हुए सिरिल रामफोसा ने संयम बरतते हुए कहा, “हमारे देश में सभी नस्लों के लोग अपराध का शिकार होते हैं – चाहे वे गोरे हों या काले। इस वीडियो की प्रामाणिकता की जांच की जाएगी। लेकिन एकतरफा बयानबाजी से सच्चाई सामने नहीं आती।”
रामफोसा ने आगे कहा कि साउथ अफ्रीका में अपराध एक बड़ी चुनौती है, लेकिन इसे नस्लीय एंगल देकर राजनीतिक दबाव बनाना उचित नहीं है।
प्लेन गिफ्ट पर तंज से माहौल और गर्माया
बहस के दौरान एक दिलचस्प मोड़ तब आया जब रामफोसा ने तंज कसते हुए कहा, “माफ कीजिए, मेरे पास आपको देने के लिए कोई प्लेन नहीं है जैसे कतर सरकार ने आपको दिया।” इस पर ट्रम्प ने भी तुरंत जवाब दिया, “काश आपके पास होता, तो मैं ले लेता।”
ट्रम्प के आरोपों की पृष्ठभूमि क्या है?
भूमि अधिग्रहण कानून बना विवाद की जड़
यह विवाद पिछले साल अक्टूबर में साउथ अफ्रीका में लागू हुए भूमि अधिग्रहण कानून से जुड़ा है। इस कानून के तहत सरकार सार्वजनिक जरूरतों के लिए बिना मुआवजा दिए जमीन अधिग्रहण कर सकती है। सरकार का दावा है कि यह कानून रंगभेद काल के अन्याय को ठीक करने के लिए जरूरी है, जब अश्वेतों से उनकी जमीनें छीन ली गई थीं।
लेकिन ट्रम्प ने इसे “गोरे किसानों के अधिकारों का उल्लंघन” बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार इस कानून की आड़ में गोरे लोगों से जबरन जमीन ले रही है।
ट्रम्प ने रोक दी आर्थिक मदद
इन आरोपों के बाद ट्रम्प ने कार्यकारी आदेश जारी कर साउथ अफ्रीका को दी जाने वाली लगभग 3,674 करोड़ रुपए (440 मिलियन डॉलर) की वार्षिक सहायता रोक दी थी। साथ ही, अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने फरवरी 2025 में होने वाली G20 समिट का बहिष्कार करने का भी ऐलान किया था।
रामफोसा का जवाब: “सच को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है”
रामफोसा ने कहा, “हमारा संविधान इस बात की गारंटी देता है कि किसी से भी जबरन जमीन नहीं ली जाएगी। हमने कोई जमीन जब्त नहीं की है। कुछ लोग राष्ट्रपति ट्रम्प को जानबूझकर गुमराह कर रहे हैं।”
उन्होंने इस दौरान नेल्सन मंडेला का भी जिक्र करते हुए कहा, “हमने उनसे सीखा है कि हर समस्या का समाधान संवाद से हो सकता है, न कि टकराव से।”
क्या साउथ अफ्रीका में गोरे लोग वाकई खतरे में हैं?
साउथ अफ्रीका में लंबे समय तक रंगभेद की नीति लागू रही है। आज भी सामाजिक और आर्थिक असमानता स्पष्ट है – अश्वेतों की बस्तियां और गोरों की आलीशान कोठियां इस अंतर को दर्शाती हैं।
हालांकि, आंकड़े बताते हैं कि देश में अपराध सभी को प्रभावित करता है। लेकिन ट्रम्प का दावा है कि गोरे लोग, खासकर किसान, अधिक टारगेट हो रहे हैं, और यह सरकार की लापरवाही का परिणाम है।
गोल्फ खिलाड़ियों की मौजूदगी: एक शांतिपूर्ण संकेत
मुलाकात के दौरान दक्षिण अफ्रीका के दो प्रसिद्ध गोल्फर – एर्नी एल्स और रीटिफ गूसेन भी मौजूद थे, जिन्हें रामफोसा विशेष तौर पर साथ लाए थे। गोल्फ ट्रम्प का पसंदीदा खेल है, इसलिए रामफोसा ने माहौल को हल्का करने की कोशिश की थी।
निष्कर्ष: बहस के पीछे राजनीति या मानवाधिकार?
ट्रम्प रामफोसा विवाद केवल दो नेताओं के बीच बहस नहीं है, बल्कि यह एक बड़ा राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा बन चुका है। जहां ट्रम्प इसे मानवाधिकार का मामला बता रहे हैं, वहीं रामफोसा इसे देश की आंतरिक नीति में बाहरी हस्तक्षेप मानते हैं।
अब देखना होगा कि यह बहस आगे और कितना राजनीतिक रूप लेती है, और क्या इसका असर अमेरिका-साउथ अफ्रीका के संबंधों पर पड़ता है या नहीं।
