मंदसौर जिले की मल्हारगढ़ तहसील के अंतर्गत आने वाले ग्राम खड़पाल्या में एक किसान का सीमांकन न होने से विवाद गहराता जा रहा है। सीमांकन का आदेश जारी हुए तीन दिन से अधिक बीत चुके हैं, लेकिन राजस्व विभाग के अधिकारी अब तक मौके पर नहीं पहुंचे। इससे नाराज़ किसान लगातार तहसील कार्यालय और राजस्व निरीक्षक कार्यालय के चक्कर काट रहा है।
वहीं दूसरी ओर, जिस भूमि पर विवाद है, उस पर कब्जाधारी व्यक्ति राजनीतिक रसूखदारों के माध्यम से अपनी पकड़ मजबूत करने में लगा हुआ है। किसान अब प्रशासन से न्याय की गुहार लगा रहा है।
किसान की शिकायत — आदेश हुआ पर सीमांकन नहीं
ग्राम खड़पाल्या की निवासी श्रीमती जानीबाई पति उकारलाल सूर्यवंशी ने बताया कि उनकी निजी कृषि भूमि सर्वे नंबर 258/6, रकबा 0.38 आरी स्थित ग्राम खड़पाल्या, तहसील मल्हारगढ़ में है। उन्होंने बताया कि सीमांकन के लिए कई बार आवेदन तहसील कार्यालय और कलेक्टर कार्यालय दोनों जगह दिए गए, लेकिन आज तक सीमांकन नहीं कराया गया।
उनका कहना है कि —
“मैंने भूमि का चालान और अन्य दस्तावेज सहित आवेदन दिया था, तहसीलदार और पटवारी दोनों को अवगत कराया। पटवारी मौके पर तो आए, पर यह कहते हुए लौट गए कि नक्शा ठीक नहीं है। बार-बार कोई न कोई बहाना बना दिया जाता है।”
तहसीलदार ने जारी किया था सीमांकन आदेश
जाँच के बाद तहसीलदार मल्हारगढ़ द्वारा एक स्पष्ट आदेश पारित किया गया था। आदेश क्रमांक 3844/R2/2025 दिनांक 07.11.2025 के अनुसार राजस्व निरीक्षक वृत्त-2 बूढा को निर्देश दिए गए थे कि संबंधित भूमि का सीमांकन उसी दिन किया जाए।
आदेश में यह भी उल्लेख किया गया था कि —
“ग्राम पंचायत खड़पाल्या की कृषि भूमि सर्वे क्रमांक 258/6 रकबा 0.38 हेक्टेयर का सीमांकन 07 नवम्बर को किया जाना प्रस्तावित है। सभी पक्षगणों और पड़ोसियों को अनिवार्य रूप से उपस्थित होना होगा, अन्यथा एकपक्षीय सीमांकन किया जाएगा।”
लेकिन निर्धारित तिथि बीत जाने के बाद भी सीमांकन नहीं हुआ, जिससे यह सवाल उठने लगे हैं कि प्रशासनिक आदेश आखिर कितने प्रभावी हैं?
अधिकारियों की लापरवाही से परेशान किसान
स्थानीय लोगों का कहना है कि गिरदावर से लेकर पटवारी तक इस मामले में कोई रुचि नहीं ले रहे। किसान की कई बार की विनती के बावजूद, सीमांकन का कार्य टालमटोल में डाला जा रहा है।
किसान वर्ग का यह भी आरोप है कि –
“मल्हारगढ़ तहसील में केवल आदेश निकलते हैं, लेकिन उनकी क्रियान्विति नहीं होती। अधिकारी सिर्फ ‘आदेश-आदेश’ का खेल खेल रहे हैं।”
क्या नेतागीरी रोक रही है सीमांकन कार्यवाही?
ग्रामीणों का आरोप है कि जिस भूमि पर सीमांकन होना है, वहां कब्जाधारी व्यक्ति राजनीतिक दबाव बना रहा है। बताया जा रहा है कि कब्जाधारी लगातार स्थानीय नेताओं के चक्कर लगा रहा है ताकि सीमांकन की प्रक्रिया को रोका जा सके।
ग्रामीणों ने सवाल उठाया है —
“क्या अधिकारी नेताओं के दबाव में काम कर रहे हैं? क्या गरीब किसान की सुनवाई सिर्फ कागजों में सीमित रह गई है?”
पटवारी ने दी सफाई
हल्का पटवारी रुचि पांडे ने बताया कि
“भूमि को लेकर विवाद की स्थिति बन रही है, इसलिए तहसीलदार स्वयं मौके पर जाकर सीमांकन करना चाहते हैं। तहसीलदार वर्तमान में छुट्टी पर हैं, उनके लौटते ही सीमांकन कराया जाएगा।”
हालांकि, किसान पक्ष का कहना है कि यह भी एक नया बहाना है ताकि सीमांकन कार्य को और टाला जा सके।
प्रशासन की चुप्पी से बढ़ी आशंकाएँ
इस पूरे मामले में कलेक्टर कार्यालय तक शिकायत पहुँच चुकी है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई है। किसानों का कहना है कि अगर जल्द सीमांकन नहीं हुआ, तो वे सामूहिक रूप से कलेक्टर कार्यालय का घेराव करेंगे।
स्थानीयों की प्रतिक्रिया
किसान उकारलाल सूर्यवंशी कहते हैं — “तीन दिन पहले का आदेश आज तक अमल में नहीं आया। अब तो हमें विश्वास ही नहीं कि अधिकारी न्याय करेंगे।”
ग्रामवासी राधेश्याम पाटीदार ने कहा — “यह पहली बार नहीं, बल्कि हर सीमांकन मामले में यही ढिलाई रहती है। अधिकारी फोन तक नहीं उठाते।”
कृषि भूमि विवादों में प्रशासन की भूमिका पर सवाल
मल्हारगढ़ क्षेत्र में ऐसे कई मामले हैं जहाँ सीमांकन के आदेश के बाद भी राजस्व अमला मौके पर नहीं पहुंचता। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की प्रशासनिक लापरवाही न केवल किसानों के अधिकारों का हनन है, बल्कि भूमि विवादों को और बढ़ावा देती है।
निष्कर्ष: खड़पाल्या का यह मामला प्रशासनिक सुस्ती और राजनीतिक हस्तक्षेप की एक झलक पेश करता है। सवाल यह है कि क्या प्रशासन गरीब किसान की आवाज सुनेगा या फिर यह मामला भी “आदेशों की फाइलों” में दबा रह जाएगा?