
रतलाम ✍️ रिपोर्ट: राजेन्द्र देवड़ा, स्वतंत्र पत्रकार

ज़िले के आलोट तहसील और आसपास के ग्रामीण इलाकों में एक बार फिर राजस्थान के कंजर गिरोह सक्रिय हो गए हैं। किसानों से रखवाली के नाम पर सालाना “बंदी” के रूप में अवैध वसूली की जा रही है। सूत्रों के अनुसार, कंजर विक्रम, उसके पिता चैना कंजर और रामकन्या कंजर इन दिनों आलोट, कराड़िया, बरखेड़ा और आसपास के गांवों में आतंक फैलाए हुए हैं।
किसानों से जबरन वसूली, न देने पर चोरी और धमकी की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। स्थानीय ग्रामीणों ने बरखेड़ा थाने पहुंचकर कंजरों के बढ़ते अत्याचारों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
कंजरों की “बंदी वसूली” से परेशान किसान
राजस्थान के झालावाड़ जिले के चोमेहला और गंगधार क्षेत्र से आए कंजरों ने आलोट क्षेत्र में अपने ठिकाने बना रखे हैं। यह गिरोह किसानों से सालाना रखवाली के नाम पर ₹5,000 से ₹10,000 तक की बंदी वसूली करता है। जो किसान इनकी अवैध मांगों को पूरा नहीं करते, उनके खेतों से मवेशी, ट्रैक्टर, पंप सेट और फसल चोरी कर ली जाती है।
किसान बताते हैं कि चोरी के बाद यह कंजर गिरोह अपने दलालों के माध्यम से वही सामान लौटाने के नाम पर और पैसा वसूलता है। यह दलाल स्थानीय स्तर पर ही रहते हैं, जो कंजरों को पुलिस की गतिविधियों की खबर पहले ही पहुंचा देते हैं।
आलोट पुलिस के लिए बनी चुनौती
आलोट पुलिस अनुविभाग के लिए यह कंजर समस्या वर्षों पुरानी सिरदर्द बन चुकी है। कई बार पुलिस ने डेरों पर दबिश दी, लेकिन महिलाएं और बच्चे ही डेरों में मौजूद मिले, जिससे कार्रवाई ठंडी पड़ गई।
कंजर वारदात के बाद जंगलों और दूसरे इलाकों में छिप जाते हैं, इसलिए गिरफ्तारी मुश्किल हो जाती है।
पुलिस सूत्रों का कहना है कि इन गिरोहों के पास क्षेत्रवार बंटवारा है। हर कंजर परिवार का अलग “एरिया” होता है, जहां वे वसूली और चोरी की वारदातें अंजाम देते हैं।
पटलन प्रथा – कंजर समाज की अनोखी व्यवस्था
कंजर जाति में “पटलन प्रथा” प्रचलित है, जिसमें समुदाय की एक महिला को पटलन घोषित किया जाता है। यह महिला कोर्ट-कचहरी, थाना और जेल जैसे सभी मामलों की देखरेख करती है।
यह भी माना जाता है कि यह महिला समाज की “मुखिया” की तरह काम करती है, और पुलिस कार्रवाई या अदालत के मामलों में कंजरों का पक्ष संभालती है।
कंजर दलालों पर कार्रवाई की मांग
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, कंजरों के दलाल ही इस अपराध चक्र की जड़ हैं। यही लोग चोरी का माल वापस दिलाने, अवैध वसूली कराने और पुलिस की जानकारी पहुंचाने का काम करते हैं। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि इन्हीं दलालों की मिलीभगत से कंजर आज भी सक्रिय हैं।
ग्रामीणों ने कहा,
“अगर पुलिस ईमानदारी से इन दलालों को पकड़े तो आधी समस्या खत्म हो जाएगी। लेकिन इन पर अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।”
10 साल जेल में रहा विक्रम कंजर – अब फिर सक्रिय
सूत्रों के अनुसार, विक्रम कंजर पिता चैना कंजर करीब 10 साल तक जेल में बंद था। दो साल पहले जेल से छूटने के बाद उसने धतुरिया गांव के एक किसान को बंदूक दिखाकर धमकाया और सालाना बंदी वसूली की मांग की थी।
ग्रामीणों के विरोध के बावजूद, अब फिर से वही गिरोह आलोट और कराड़िया क्षेत्र में सक्रिय हो गया है।
राजस्थान के कंजर गिरोहों का फैलता नेटवर्क
कंजर जाति के अधिकांश गिरोह राजस्थान के झालावाड़, कोटा और बारां जिलों से आते हैं। आलोट, पिपलिया सिसौदिया, बरखेड़ा, कराड़िया, देवड़ा और खजूरी जैसे गांव इनकी सीमा पार गतिविधियों से प्रभावित हैं।
इन गिरोहों का नेटवर्क इतना मजबूत है कि राजस्थान और मध्यप्रदेश दोनों की पुलिस इनके बीच समन्वय नहीं बना पाती। परिणामस्वरूप ये अपराधी एक राज्य में वारदात कर दूसरे राज्य में छिप जाते हैं।
दो राज्यों की सरकारें भी असफल
कंजर समस्या कोई नई नहीं है। पिछले कई दशकों से राजस्थान और मध्यप्रदेश सरकारें इस पर सिर्फ मीटिंग और योजनाओं तक सीमित हैं।
ना तो कंजर समाज का कोई सामाजिक पुनर्वास हुआ,
ना ही इस गिरोह के अपराधों पर संयुक्त अभियान चलाया गया।
इसी कारण यह समस्या आज भी पुलिस के लिए “विरासत में मिली चुनौती” बन चुकी है।
किसानों की पुकार – कब मिलेगा राहत का रास्ता?
ग्रामीणों ने बताया कि कंजरों के कारण अब खेती करना भी खतरे से खाली नहीं। हर साल फसल के समय या शादी-ब्याह के सीजन में ये गिरोह अधिक सक्रिय हो जाते हैं।
“हमसे रखवाली के नाम पर पैसा वसूला जाता है। न देने पर रातों में खेतों से ट्रैक्टर, मवेशी या अनाज गायब कर दिया जाता है। पुलिस आती है लेकिन कुछ नहीं कर पाती।”
रतलाम पुलिस अधीक्षक ने लिया संज्ञान
सूत्रों के अनुसार, रतलाम पुलिस अधीक्षक ने इस पूरे मामले की जानकारी मिलने के बाद कंजर दलालों पर कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। ग्रामीणों को उम्मीद है कि इस बार पुलिस सख्त रवैया अपनाएगी और क्षेत्र को इस भय से मुक्ति मिलेगी।
कंजर समस्या का समाधान – सामाजिक सुधार ही एकमात्र रास्ता
विशेषज्ञों का मानना है कि कंजर समाज को मुख्यधारा में लाना ही स्थायी समाधान है। रोजगार, शिक्षा और पुनर्वास योजनाएं इस समुदाय के युवाओं को अपराध से दूर कर सकती हैं।
सिर्फ दबिश या गिरफ्तारी से यह समस्या खत्म नहीं होगी, जब तक कि दोनों राज्य सरकारें मिलकर दीर्घकालीन नीति नहीं बनातीं।
🔹 निष्कर्ष
आलोट क्षेत्र में फिर से सिर उठा रहे कंजर गिरोह न केवल कानून व्यवस्था के लिए चुनौती हैं, बल्कि ग्रामीणों के जीवन में भय का पर्याय बन चुके हैं।
समय आ गया है कि पुलिस और प्रशासन इन गिरोहों के दलालों, नेटवर्क और अवैध वसूली तंत्र पर मिलकर सख्त कार्रवाई करे।
किसानों की सुरक्षा और न्याय तभी संभव है, जब यह समस्या सिर्फ कागज़ पर नहीं, ज़मीन पर सुलझे।