मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है, जहां **सीतामऊ में राशन घोटाला** ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर किया है। जून, जुलाई और अगस्त 2025 के तीन लगातार महीनों में प्रतापपुरा गांव के गरीब उपभोक्ताओं को उनके हक का राशन—गेहूं, चावल, नमक और चीनी—नहीं मिला। यह घटना राशन वितरण में भ्रष्टाचार की निरंतर समस्या को दर्शाती है, जहां गरीबों के लिए निर्धारित आवश्यक वस्तुओं को कथित तौर पर काले बाजार में बेच दिया जाता है। जांच के दौरान प्रशासन द्वारा इस **सीतामऊ में राशन घोटाला** पर कार्रवाई की जा रही है, जो सरकारी कल्याण योजनाओं की प्रभावशीलता पर सवाल उठाती है। **सीतामऊ में राशन घोटाला** एक नियमित निरीक्षण के दौरान कनिष्ठ आपूर्ति अधिकारी रघुराज सिंह द्वारा उजागर हुआ। रिपोर्ट्स के अनुसार, प्रतापपुरा की सरकारी उचित मूल्य दुकान को आवंटित स्टॉक प्राप्त हुआ था, लेकिन यह लाभार्थियों तक नहीं पहुंचा। पीओएस मशीनों और स्टॉक रजिस्टरों में स्पष्ट विसंगतियां पाई गईं, जो दर्शाती हैं कि अनाज को अवैध रूप से हटा दिया गया। ग्रामीणों ने दुकान संचालकों पर आरोप लगाया कि उन्होंने राशन को गैरकानूनी तरीके से बेचा, जिससे क्षेत्र में खाद्य असुरक्षा बढ़ गई। पुलिस ने आरोपी के खिलाफ आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 की धारा 3/7 के तहत मामला दर्ज किया है, जो इस **सीतामऊ में राशन घोटाला** में जवाबदेही की दिशा में एक कदम है।


आरोपी दुकानदारों पर कानूनी शिकंजा
इस **सीतामऊ में राशन घोटाला** के मुख्य आरोपी हैं मनीष, रमेशचंद्र सेन का पुत्र, जो गरोठ थाने के अंतर्गत बोलिया का निवासी है, और वासब कुरैशी, हुसैन कुरैशी का पुत्र, जो सीतामऊ थाने के अंतर्गत सूर्यखेड़ी का निवासी है। अधिकारियों का आरोप है कि दोनों ने मिलकर वितरण को रोका, जिससे गरीबों का हक छीन लिया गया। यह कोई अलग-थलग घटना नहीं है; जांच से पता चलता है कि संचालक प्रणाली में कमजोरियों का फायदा उठाकर व्यक्तिगत लाभ कमाते हैं। अधिकारी सिंह द्वारा दर्ज शिकायत के बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज की।
ग्रामीणों की भूख की दर्दनाक कहानियां
इस **सीतामऊ में राशन घोटाला** का मानवीय प्रभाव गहरा है। गांव की महिलाओं ने खाली हाथ लौटने की दर्दनाक कहानियां साझा कीं, जिससे उन्हें बच्चों को भूखा सुलाना पड़ा। “हमने कई बार बच्चों को बिना खाए सुलाया। हर बार दुकान जाने पर संचालक कहता कि राशन नहीं आया,” एक निवासी ने दुखी होकर कहा। यह वंचन न केवल पोषण को प्रभावित करता है बल्कि सरकारी पहलों पर विश्वास को भी कमजोर करता है। प्रतापपुरा जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां कई लोग पूरी तरह से पीडीएस पर निर्भर हैं, ऐसे घोटाले व्यापक कुपोषण और सामाजिक अशांति पैदा कर सकते हैं। **सीतामऊ में राशन घोटाला** ने स्थानीय लोगों में गुस्सा पैदा कर दिया है, जो इसे “गरीबों के पेट पर लात” कहते हैं। वे कहते हैं कि अगर सब्सिडी वाला अनाज भी चोरी हो जाएगा, तो कल्याण योजनाएं कागजी साबित होंगी। सामुदायिक नेता सख्त निगरानी की मांग कर रहे हैं, जिसमें नियमित ऑडिट और डिजिटल ट्रैकिंग शामिल है, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।
घोटाला कैसे पकड़ा गया
कनिष्ठ आपूर्ति अधिकारी रघुराज सिंह ने **सीतामऊ में राशन घोटाला** को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रतापपुरा दुकान के निरीक्षण के दौरान, पीओएस डेटा और भौतिक स्टॉक की क्रॉस-वेरिफिकेशन से धोखाधड़ी का पता चला। सबूत अकाट्य थे: राशन प्राप्त होने के रूप में दर्ज था लेकिन वितरित नहीं किया गया। सिंह ने तुरंत पुलिस शिकायत दर्ज कराई, जिससे एफआईआर हुई। यह सक्रिय दृष्टिकोण पीडीएस ढांचे में भ्रष्टाचार से लड़ने में सतर्क अधिकारियों के महत्व को दर्शाता है।

प्रशासन का रुख और भविष्य की चेतावनी
जिला प्रशासन ने **सीतामऊ में राशन घोटाला** को अत्यंत गंभीरता से लिया है, इसे “गरीबों के अधिकारों की खुली लूट” करार दिया है। पुलिस ने जांच शुरू कर दी है, और अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि उचित मूल्य दुकानों पर किसी भी अनियमितता को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मजबूत निगरानी उपाय, जैसे आकस्मिक जांच और लाभार्थी फीडबैक सिस्टम, पर विचार किया जा रहा है। यह मामला मध्य प्रदेश में सख्त नियमों के लिए एक जागृति कॉल है, जहां पीडीएस लाखों लोगों के लिए जीवन रेखा है।
व्यापक संदर्भ
मध्यप्रदेश में व्यापक राशन घोटाले यह **सीतामऊ में राशन घोटाला** राज्य की राशन वितरण नेटवर्क में धोखाधड़ी के बड़े पैटर्न का हिस्सा है। हाल ही में, सतना जिले में एक विचित्र घोटाला सामने आया, जहां 8 साल पहले मृत बलवंत सिंह के नाम पर आज भी राशन उठाया जा रहा है, जबकि जिंदा शंकर आदिवासी को 2017 में मृत घोषित कर दिया गया, जिससे उन्हें 8 साल तक राशन नहीं मिला। मामला एक सड़क दुर्घटना में मृत बलवंत सिंह से जुड़ा है, फिर भी उनके नाम पर राशन निकाला जाता रहा। वहीं, 62 वर्षीय आदिवासी शंकर को गलत तरीके से मृत दिखाया गया, जिससे वे बार-बार अपील करने के बावजूद वंचित रहे। इसी तरह, जबलपुर में ₹2.2 करोड़ का बड़ा **राशन घोटाला** उजागर हुआ, जिसमें 3,900 क्विंटल गेहूं और 3,300 क्विंटल चावल के अलावा 38 क्विंटल नमक और 9 क्विंटल चीनी गायब हो गए। धोखाधड़ी पीओएस मशीनों और ईपीडीएस पोर्टल में छेड़छाड़ से जुड़ी थी, जिससे कई सरकारी दुकानों में स्टॉक की कमी आई। जांच पूर्व अधिकारियों के खिलाफ है। ये घटनाएं फर्जी एंट्री, काला बाजार और अपर्याप्त सत्यापन प्रक्रियाओं जैसी गहरी समस्याओं को इंगित करती हैं। मंदसौर में ही, 2023 में ₹87 करोड़ का घोटाला हुआ था, जिससे सजाएं हुईं, फिर भी समस्याएं बनी हुई हैं। विशेषज्ञ बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण और रीयल-टाइम ट्रैकिंग जैसे तकनीकी सुधारों की मांग कर रहे हैं।
आगे का रास्ता: न्याय और सुधार सुनिश्चित करना
**सीतामऊ में राशन घोटाला** प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती है, जो कमजोर आबादी की रक्षा के लिए उनकी प्रतिबद्धता की परीक्षा लेता है। जांच के साथ, दोषियों पर सख्त सजा पर सभी की नजरें हैं। क्या इससे सार्थक बदलाव आएंगे, या यह एक और भूली हुई सुर्खी बनेगी? प्रतापपुरा के ग्रामीणों के लिए न्याय का मतलब न केवल जवाबदेही है बल्कि उनके बुनियादी अधिकारों की सुरक्षित डिलीवरी भी है। एक ऐसे देश में जहां खाद्य सुरक्षा एक संवैधानिक वादा है, ऐसे घोटालों को खत्म करना शासन में विश्वास बहाल करने के लिए आवश्यक है।
