गुरुवार को गरोठ तहसील में उमड़ा किसानों का गुस्सा
गुरुवार शाम मंदसौर जिले की गरोठ तहसील में किसानों का धैर्य आखिरकार टूट गया। खेतों में मेहनत से खड़ी की गई फसल पीली मोजेक जैसी खतरनाक बीमारी से पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है। इस तबाही के बीच, बीमा राशि मिलने की उम्मीद ही किसानों की आखिरी आस थी। लेकिन, बीमा भुगतान अब तक अधर में लटका हुआ है। इसी पीड़ा और आक्रोश को आवाज देने के लिए भारतीय किसान संघ के नेतृत्व में सैकड़ों किसान तहसील मुख्यालय पर इकट्ठा हुए और जोरदार प्रदर्शन किया।


फसलें बर्बाद, भविष्य अधर में
जिले के कई गांवों में सोयाबीन की फसल इस बार अच्छी खड़ी थी। किसानों ने बीज, खाद और कीटनाशक पर कर्ज लेकर मेहनत की थी। लेकिन अगस्त आते-आते पीली मोजेक रोग ने उनकी सारी उम्मीदों को मटियामेट कर दिया। जिन खेतों में लहलहाती फसलें दिखती थीं, वे अब पीले पड़े पौधों और सूखे तनों के ढेर बन गए हैं।
यही दृश्य किसानों को हताश कर रहा है। एक वृद्ध किसान की व्यथा प्रदर्शन में सभी को झकझोर गई—“जब फसलें ही बर्बाद हो गईं तो हम अपने परिवार को कैसे पालें? बच्चों की पढ़ाई और घर का खर्च कैसे चलाएं? कर्ज कौन चुकाएगा?” यह सवाल हर उस किसान के दिल की आवाज थी, जो वहां खड़ा था।

207 करोड़ की बीमा राशि मंजूर, मगर किसानों तक नहीं पहुँची
किसानों ने प्रदर्शन के दौरान बताया कि मंदसौर जिले के लिए 207 करोड़ रुपए की फसल बीमा राशि स्वीकृत हुई है। लेकिन अधिकांश किसानों के खाते में या तो रकम बिल्कुल नहीं पहुँची या फिर नाममात्र की छोटी राशि आई है, जो उनकी वास्तविक हानि को देखते हुए नगण्य है।
किसानों का कहना था कि सरकार और बीमा कंपनियों की उदासीनता ने उनकी समस्याओं को और गहरा दिया है। फसल का नुकसान तो हो ही चुका है, अब अगर बीमा का पैसा भी नहीं मिला तो उनका जीवन संकट में डूब जाएगा।
गांव-गांव से तहसील मुख्यालय पहुँचे किसान
इस विरोध प्रदर्शन में गरोठ के अलावा शामगढ़, सीतामऊ और मंदसौर जिले के कई गांवों के किसान शामिल हुए। उनका कहना था कि उन्होंने कई बार ज्ञापन सौंपकर अपनी समस्या बताई, लेकिन समाधान नहीं मिला। मजबूर होकर उन्हें सड़कों पर उतरना पड़ा।
भारतीय किसान संघ के पदाधिकारियों ने प्रशासन से झूलते बीमा भुगतान को तुरंत किसानों के खाते में जमा करने की मांग की। उनके अनुसार, जब सरकारें किसानों को “अन्नदाता” कहती हैं तो फिर संकट की घड़ी में किसानों को यूं बेसहारा क्यों छोड़ दिया जाता है?
दो वक्त की रोटी और कर्ज़ चुकाना बड़ी चुनौती
गांवों में स्थिति इतनी गंभीर है कि कई किसानों के घर भोजन का संकट गहराता जा रहा है। जिन पैसों से वे घर के खर्च और बच्चों की पढ़ाई का इंतजाम करते थे, वही अब कर्ज की ब्याज में फंसता जा रहा है।
एक किसान ने कहा—“हमने बीमा का प्रीमियम समय पर भरा। लेकिन विपरीत हालात आने पर बीमा की राशि समय पर क्यों नहीं मिलती? अगर यही हाल रहा तो किसान धीरे-धीरे खेती से मुंह मोड़ लेगा।”

प्रशासन को सौंपा ज्ञापन
प्रदर्शन के बाद किसानों ने तहसीलदार को ज्ञापन सौंपा और चेतावनी दी कि यदि जल्द ही बीमा भुगतान नहीं हुआ और प्रभावित किसानों को राहत नहीं दी गई, तो वे बड़े आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।
ज्ञापन में यह भी मांग रखी गई कि किसानों के कर्ज़ को तत्काल प्रभाव से पुनर्निर्धारित किया जाए और पीली मोजेक से प्रभावित गांवों में विशेष सर्वे कर वास्तविक नुकसान का आंकलन किया जाए।
किसानों की पीड़ा और सरकार की जिम्मेदारी
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या सच में किसानों के हक में बनाई गई योजनाएं सही तरीके से जमीन पर उतर रही हैं? किसानों का कहना है कि जब तक बीमा कंपनियों और प्रशासन के बीच की खींचतान खत्म नहीं होगी, तब तक आम किसान नुकसान उठाता रहेगा।
पीली मोजेक का असर केवल फसलों तक ही नहीं, बल्कि पूरे गांव की अर्थव्यवस्था पर हुआ है। जब फसलें नहीं बिकेंगी तो व्यापारियों, मजदूरों और ग्रामीण बाजारों पर भी इसका असर दिखना तय है।
मंदसौर का कृषि संकट
मंदसौर जिला लंबे समय से सोयाबीन और अफीम उत्पादन के लिए जाना जाता है। लेकिन हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन और कीट-रोगों ने यहां के किसानों को भारी नुकसान पहुँचाया है। इस बार पीली मोजेक ने स्थिति को विकट बना दिया है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि समय रहते इस रोग पर नियंत्रण की योजनाएं नहीं बनीं, तो आने वाले वर्षों में औसत उत्पादन तेजी से घट सकता है।
किसानों की उम्मीद: जल्द मिले न्याय
प्रदर्शन के अंत में एक भावुक किसान ने कहा—“हम सरकार से कोई दान या उपकार नहीं चाहते। हमने बीमा प्रीमियम भरा है, बदले में हमारी हकदार राशि हमें मिले। यही हमारे लिए न्याय है।”
इस एक पंक्ति में पूरे आंदोलन का सार छिपा था—किसानों की लड़ाई दया की भीख मांगने की नहीं, बल्कि अपने अधिकार पाने की है।
निष्कर्ष
गरोठ तहसील का यह प्रदर्शन केवल एक जिले का मामला नहीं है, बल्कि पूरे राज्य और देश के लाखों किसानों की हकीकत को सामने लाता है। जब मेहनत से उगाई गई फसलें रोग और मौसम की मार से बर्बाद हो जाती हैं, तो किसान की आखिरी आस सिर्फ बीमा पर टिकती है। लेकिन अगर यह भी समय पर न मिले, तो किसान किस ओर जाए?
आज जरूरत है कि सरकार और बीमा कंपनियां किसानों की स्थिति को समझें और त्वरित कदम उठाएं। क्योंकि अगर किसान टूटेगा तो सिर्फ खेत ही नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियां भी प्रभावित होंगी।
