मां-बेटी के जटिल रिश्तों पर आधारित कहानी
शुचि तलाटी की फिल्म ‘गर्ल्स विल बी गर्ल्स’ एक गहराई से तैयार की गई, मनोवैज्ञानिक और संवेदनशील कहानी है, जो दर्शकों को मां-बेटी के जटिल रिश्तों और एक किशोरी की जिंदगी के उतार-चढ़ाव के सफर पर ले जाती है। फिल्म ने सनडांस फिल्म फेस्टिवल में दो पुरस्कार जीते हैं, जो इसके विशेष महत्व को दर्शाते हैं।
फिल्म की कहानी अनिला (कनी कुश्रुती) और उनकी बेटी मीरा (प्रीति पाणिग्रही) के इर्द-गिर्द घूमती है। अनिला एक सख्त, परिपक्व और अपने तरीके से नियंत्रित करने वाली मां हैं, जो हर साल हरिद्वार से अपनी बेटी की पढ़ाई में मदद करने के लिए आती हैं। दूसरी ओर, मीरा एक नाजुक उम्र की किशोरी है, जो जल्द ही 18 साल की होने वाली है। वह पढ़ाई में होशियार और स्कूल की पहली लड़की हेड प्रीफेक्ट के रूप में चुनी गई है।
मां-बेटी के रिश्तों में खींचतान और प्रेम का समीकरण
कहानी में मां और बेटी के रिश्ते के भीतर छिपी प्रतिस्पर्धा और संघर्ष तब उभरता है, जब मीरा अपने स्कूल के एक लड़के, श्रीनिवास (केशव बिनॉय किरन) की ओर आकर्षित होती है। श्रीनिवास का सहज स्वभाव और अनिला के साथ सहजता, रिश्तों में जटिलताओं को जन्म देता है।
फिल्म में एक दृश्य में अनिला, मीरा के प्रेम जीवन पर टिप्पणी करती हैं, जो उनके रिश्ते की बारीकियों को दर्शाता है। यह एक साधारण हस्तक्षेप लगता है, लेकिन इसमें गहरा नाटकीय तनाव महसूस होता है।
कहानी का मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक पहलू
शुचि तलाटी का निर्देशन फिल्म को एक गहराई देता है। मीरा के व्यक्तिगत संघर्ष और भावनात्मक उथल-पुथल को बड़ी बारीकी से दिखाया गया है। फिल्म का स्क्रीनप्ले सूक्ष्म और विस्तार से भरपूर है। मां और बेटी के बीच का यह वॉल्ट्ज, प्रेम, ईर्ष्या और आत्म-साक्षात्कार का बेहतरीन प्रदर्शन करता है।
फिल्म की खूबसूरती और बारीकियां
फिल्म ‘गर्ल्स विल बी गर्ल्स’ केवल एक साधारण किशोरी की कहानी नहीं है। यह सामाजिक परंपराओं, लिंग मानदंडों और व्यक्तित्व की गहराइयों को छूती है। मीरा का अपने सपनों और जिम्मेदारियों के बीच झूलना, दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ता है।
‘गर्ल्स विल बी गर्ल्स’ एक अनोखी, सूक्ष्म और भावनात्मक गहराई से भरी फिल्म है, जो मां-बेटी के रिश्ते और एक किशोरी की जटिलताओं को खूबसूरती से प्रस्तुत करती है। यह फिल्म आपको सोचने पर मजबूर करती है और एक गहरे प्रभाव के साथ आपके दिल में उतर जाती है।