नई दिल्ली: 26 नवंबरअत्यधिक भूजल दोहन से न केवल जल संकट गहराता जा रहा है, बल्कि इसका असर पृथ्वी की धुरी पर भी पड़ रहा है। एक हालिया स्टडी के अनुसार, पिछले दो दशकों में भूजल के अत्यधिक निष्कर्षण ने पृथ्वी की धुरी को 31.5 इंच (लगभग 80 सेंटीमीटर) तक झुका दिया है। इसके अलावा, इस प्रक्रिया से वैश्विक समुद्र-स्तर में 0.24 इंच (लगभग 6 मिलीमीटर) की वृद्धि हुई है।
यह अध्ययन, जो जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित हुआ है, बताता है कि 1993 से 2010 के बीच, लगभग 2,150 गीगाटन भूजल निकाला गया। इसका अधिकांश हिस्सा अंततः महासागरों में चला गया, जिससे पृथ्वी के घूर्णन ध्रुव में बदलाव आया।
पृथ्वी की धुरी पर प्रभाव
सियोल नेशनल यूनिवर्सिटी के जियोफिजिसिस्ट की-वियन सेओमैट के नेतृत्व में किए गए शोध के अनुसार, भूजल पुनर्वितरण पृथ्वी के घूर्णन ध्रुव के झुकाव को प्रभावित करने वाला सबसे प्रमुख कारक है। यह बदलाव मौसम को सीधे तौर पर नहीं बदलेगा, लेकिन वैश्विक जलवायु पैटर्न पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकता है।
भूजल: एक अदृश्य संपत्ति
भूजल, जो धरती की सतह के नीचे मिट्टी, रेत और चट्टानों के बीच जमा होता है, जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसका उपयोग पीने के पानी, कृषि और उद्योगों में किया जाता है। लेकिन इसका अनियंत्रित दोहन वैश्विक स्तर पर जलवायु संतुलन को प्रभावित कर रहा है।
क्या है समाधान?
वैज्ञानिकों का कहना है कि भूजल प्रबंधन को प्राथमिकता देना अनिवार्य है। जल संरक्षण, पुनर्भरण तकनीकों और सतत विकास के जरिए इस समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है।
नासा के मुताबिक, पृथ्वी का वर्तमान झुकाव (23.5 डिग्री) ही मौसम के चक्रों का कारण है। हालांकि हालिया झुकाव का सीधा प्रभाव मौसम पर नहीं पड़ेगा, लेकिन यह वैश्विक जलवायु में बदलाव का संकेत जरूर देता है।
यह शोध भूजल के महत्व और उसके संतुलित उपयोग की आवश्यकता पर जोर देता है। पृथ्वी के झुकाव में हो रहे इन बदलावों का अध्ययन बड़े पैमाने पर जल भंडारण और जलवायु परिवर्तन को समझने में मदद कर सकता है।