जयपुर – सरकारी नौकरी की उम्मीद में जीवन व्यतीत कर रहे मनीष सैनी (38) ने निराशा में आकर आत्महत्या कर ली। मनीष पिछले 19 सालों से जयपुर हाईकोर्ट में संविदा पर कार्यरत थे। उन्हें उम्मीद थी कि भविष्य में उनकी संविदा नौकरी स्थायी हो जाएगी, लेकिन हाल ही में राज्य सरकार की एक याचिका ने उनकी उम्मीदों को खत्म कर दिया, जिसके बाद उन्होंने यह कदम उठाया।
घटना का विवरण
मनीष सैनी राजकीय पीपीओ (पेंशन पेमेंट ऑफिस) ऑफिस में संविदाकर्मी के रूप में कार्यरत थे। हर रोज वे बांदीकुई से जयपुर ट्रेन द्वारा आकर काम करते थे, यह विश्वास रखते हुए कि एक दिन उनकी मेहनत का फल सरकारी नौकरी के रूप में मिलेगा। मनीष के सहकर्मी, निरंजन सिंह शेखावत ने बताया कि मनीष ने 19 साल तक लगातार किसी न किसी की नियक्ति स्थायी हो जाएगा।
नौकरी की लड़ाई और कानूनी प्रक्रिया
मनीष अकेले नहीं थे। जयपुर हाईकोर्ट की बेंच में मनीष जैसे 60 से अधिक संविदाकर्मी 2005 से कार्यरत हैं, जिनमें से 22 लोगों ने 2013 में स्थायी नियुक्ति की मांग को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इन कर्मचारियों का तर्क था कि वे सालों से सरकारी कार्यालयों में काम कर रहे हैं और उन्हें नियमित कर्मचारियों की तरह स्थायी नियुक्ति का अधिकार मिलना चाहिए।
2013 में हाईकोर्ट ने इन कर्मचारियों के पक्ष में फैसला सुनाया, जिससे मनीष और उनके साथियों को उम्मीद की एक नई किरण दिखाई दी। वे सभी आश्वस्त थे कि अब उन्हें स्थायी सरकारी नौकरी मिल जाएगी। परंतु, यह खुशी ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाई।
सामाजिक और मानसिक दबाव
यह घटना संविदाकर्मियों की उस मानसिक स्थिति को उजागर करती है, जिसमें वे सरकारी नौकरी की अनिश्चितता और सामाजिक दबाव का सामना कर रहे हैं। कई संविदाकर्मी वर्षों से इसी उम्मीद में काम कर रहे हैं कि उन्हें स्थायी नौकरी मिलेगी, परंतु उनके संघर्ष का कोई ठोस परिणाम नहीं दिख रहा है। ऐसी स्थिति में कई लोग मानसिक तनाव का शिकार हो रहे हैं।
सरकार से अपील
मनीष की आत्महत्या के बाद संविदाकर्मियों ने एकजुट होकर सरकार से अपील की है कि वह संविदा पर कार्यरत कर्मचारियों की समस्या को गंभीरता से ले और उन्हें जल्द से जल्द स्थायी नियुक्ति का प्रावधान दे। साथ ही, उन्होंने मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार अपनी एसएलपी को वापस ले ताकि हाईकोर्ट का फैसला लागू हो सके और सभी संविदाकर्मियों को न्याय मिल सके।
मनीष सैनी की इस दुखद आत्महत्या ने सरकारी नौकरी की उम्मीद में जी रहे हजारों संविदाकर्मियों की स्थिति पर ध्यान आकर्षित किया है। यह घटना बताती है कि किस तरह सरकारी नौकरी का इंतजार संविदाकर्मियों के जीवन में गहरे मानसिक और सामाजिक दबाव का कारण बनता जा रहा है।