
ai image
मध्यप्रदेश में महिलाओं के जीवन को बदलने का दावा करने वाली मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना आज भी चर्चा का केंद्र बनी हुई है। मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना: महिलाओं का सशक्तिकरण या राजनीतिक जुआ….? क्या यह योजना मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी सरकार के लिए भस्मासुर साबित होगी 2023 में शुरू हुई यह योजना महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने, उनके स्वास्थ्य और पोषण को बेहतर करने और परिवार में उनकी भूमिका को मजबूत करने का वादा करती है। लेकिन सवाल वही है – मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना: महिलाओं का सशक्तिकरण या राजनीतिक जुआ….? क्या यह योजना महिलाओं के लिए स्थायी आधारशिला है, या फिर एक ऐसा राजनीतिक भस्मासुर जो कभी भी उल्टा पड़ सकता है? खासकर जब हम सोचते हैं कि “जो महिलाएं सरकार बना सकती हैं, वो गिरा भी सकती हैं, अगर योजना बंद हुई तो।” आइए, इस योजना की हकीकत को करीब से देखते हैं, जहां उम्मीदें और चुनौतियां दोनों साथ चल रही हैं।

योजना की शुरुआत और उद्देश्य: एक नई उम्मीद की किरण
2023 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 28 जनवरी को इसकी घोषणा की और 5 मार्च को लॉन्च किया। योजना का मकसद साफ है: महिलाओं को आर्थिक आजादी देना। 21 से 60 साल की विवाहित, विधवा, तलाकशुदा या परित्यक्त महिलाएं, जिनके परिवार की सालाना आय ₹2.5 लाख से कम है और कोई आयकर दाता या पेंशनभोगी नहीं है, उन्हें हर महीने ₹1,250 मिलते हैं। मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना: महिलाओं का सशक्तिकरण या राजनीतिक जुआ….?

योजना के मुख्य उद्देश्य:
- महिलाओं के स्वास्थ्य और पोषण में सुधार।
- आर्थिक स्वावलंबन को बढ़ावा।
- परिवार के फैसलों में महिलाओं की भागीदारी मजबूत करना।
- स्थानीय संसाधनों से स्वरोजगार और आजीविका के अवसर पैदा करना।
यह योजना महिलाओं की श्रम भागीदारी की असमानता को दूर करने की कोशिश है। ग्रामीण इलाकों में पुरुषों की 57.7% भागीदारी के मुकाबले महिलाएं सिर्फ 23.3% हैं, जबकि शहरों में यह 55.9% vs 13.6% है। ऐसी स्थिति में यह योजना महिलाओं को छोटी-मोटी जरूरतों के लिए दूसरों पर निर्भर न होने देती है। मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना: महिलाओं का सशक्तिकरण या राजनीतिक जुआ….?

आर्थिक आंकड़े: कितना खर्च, कितना फायदा?
अगस्त 2025 तक योजना ने बड़े पैमाने पर काम किया है:
- पात्र महिलाएं: लगभग 1.27 करोड़।
- मासिक सहायता: ₹1,250 प्रति महिला।
- त्योहारों पर शगुन: रक्षाबंधन जैसे मौकों पर ₹250 अतिरिक्त।
- 27वीं किस्त (7 अगस्त 2025): 1.26 करोड़ महिलाओं को ₹1,859 करोड़ ट्रांसफर – इसमें ₹1,541 करोड़ मासिक सहायता और ₹340 करोड़ रक्षाबंधन शगुन शामिल।
- कुल ट्रांसफर: अगस्त 2025 तक ₹41,000 करोड़ से ज्यादा।
- वित्त वर्ष 2025-26 का खर्च: जुलाई तक ₹6,198.88 करोड़।
- भविष्य की योजना: दिवाली 2025 से ₹1,500 प्रति माह, और 2028 तक ₹3,000 तक बढ़ाने का लक्ष्य
ये आंकड़े बताते हैं कि योजना महिलाओं तक सीधे पहुंच रही है, लेकिन राज्य का कर्ज भी बढ़ रहा है – कुल ₹4.26 लाख करोड़ से ऊपर।
क्या यह टिकाऊ है?

ail image
सामाजिक प्रभाव: महिलाओं की कहानियां और बदलाव
मैंने कई महिलाओं से बात की, और उनकी कहानियां दिल छू लेती हैं। उज्जैन की जयवंती जाटव कहती हैं, “यह योजना मेरी आर्थिक कठिनाइयों से मुक्ति बनी है। रक्षाबंधन पर ₹250 अतिरिक्त ने त्योहार की खुशियां दोगुनी कर दीं।”
भोपाल की प्रियंका राय भी आभार व्यक्त करती हैं कि अब छोटी जरूरतों के लिए परिवार पर निर्भर नहीं रहना पड़ता।
सकारात्मक पक्ष:
- महिलाओं को खर्चों पर फैसला लेने की आजादी।
- बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण में सुधार।
- स्वरोजगार की संभावना, जैसे छोटे व्यवसाय में निवेश।
- घरेलू फैसलों में महिलाओं की आवाज मजबूत होना।
लेकिन चुनौतियां भी हैं:
- वित्तीय बोझ: 5 साल में ₹1 लाख करोड़ का खर्च, ₹3,000 होने पर दोगुना।
- उत्पादक उपयोग: क्या राशि शिक्षा या कौशल विकास में लग रही है?
- राजनीतिक निर्भरता: विरोधी इसे “लूटली बहना योजना” कहते हैं, जहां ₹250 की मिठाई पर ₹5,000 का बिजली बिल आता है।
राजनीतिक प्रभाव: वोट की ताकत और भस्मासुर का खतरा

ai image
2023 के चुनाव में इस योजना ने भाजपा को बड़ी जीत दिलाई। महिलाओं के खातों में सीधे पैसे ने वोट बैंक मजबूत किया। लेकिन अब विपक्ष कह रहा है कि चुनाव “लाड़ली बहना” नहीं, “धांधली आयोग” की वजह से हारे।
विश्लेषक चेताते हैं कि यह योजना भस्मासुर बन सकती है। जो महिलाएं सरकार बना सकती हैं, वो गिरा भी सकती हैं, अगर योजना बंद हुई तो।
महाराष्ट्र जैसी योजनाओं में भी यही डर है – एक बार शुरू, बंद करना राजनीतिक आत्महत्या।
शिवराज सिंह चौहान अब भी कहते हैं कि राशि ₹3,000 तक पहुंचेगी, लेकिन वर्तमान सीएम मोहन यादव के सामने वित्तीय संतुलन की चुनौती है।

ai image
एक आम नागरिक का नजरिया: स्थायी बदलाव या चुनावी हथियार?
एक भारतीय नागरिक के तौर पर, मैं मानता हूं कि यह योजना लाखों महिलाओं के जीवन में बदलाव लाई है। लेकिन क्या यह स्थायी है? क्या राशि कौशल विकास या उद्यमिता में लग रही है, या सिर्फ चुनावी चक्र का हिस्सा बन गई है? सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि यह राजनीतिक लाभ का साधन न बने, बल्कि महिलाओं की असली ताकत बने।अगर योजना बंद हुई या वादे पूरे नहीं हुए, तो महिलाओं का गुस्सा सरकार को हिला सकता है। आखिर, जो हाथ राखी बांधते हैं, वही वोट भी डालते हैं।निष्कर्ष: सशक्तिकरण की सच्ची मिसाल बन सकती है, अगर…मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना एक महत्वाकांक्षी कदम है, जिसने मध्यप्रदेश की राजनीति और महिलाओं के जीवन को छुआ है। 2025 में यह और मजबूत हो रही है, लेकिन सफलता आर्थिक टिकाऊपन और सामाजिक उत्पादकता पर निर्भर करेगी।
भस्मासुर का सबक और लाड़ली बहना योजना
भस्मासुर की कहानी में, उसे भगवान शिव ने वरदान दिया कि वह जिसके सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्म हो जाएगा। लेकिन वरदान की शक्ति ने उसे ही नष्ट करने की कगार पर ला दिया। इसी तरह, लाड़ली बहना योजना ने 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता में लाने में बड़ी भूमिका निभाई। महिलाओं के वोट बैंक को मजबूत करने वाली यह योजना एक “गेमचेंजर” साबित हुई। लेकिन अब सवाल यह है कि क्या यह योजना राज्य की अर्थव्यवस्था पर इतना बोझ डालेगी कि वह सरकार के लिए ही मुसीबत बन जाए?
आर्थिक बोझ: एक चिंताजनक तस्वीर
अगस्त 2025 तक इस योजना पर ₹41,000 करोड़ से अधिक खर्च हो चुका है। अगर इसे 5 साल तक जारी रखा जाए और राशि ₹3000 तक बढ़ाई जाए (जैसा कि 2028 तक का वादा है), तो अनुमानित खर्च ₹2 लाख करोड़ तक पहुंच सकता है। राज्य का कर्ज पहले से ही ₹4.31 लाख करोड़ से अधिक है, जो बजट (₹4.21 लाख करोड़) से भी ज्यादा है। हर महीने ₹310 करोड़ का अतिरिक्त बोझ (₹1250 से ₹1500 की वृद्धि के बाद) राज्य के खजाने पर पड़ रहा है। क्या यह वित्तीय व्यवस्था को संभाल पाएगी, या यह भस्मासुर की तरह सरकार को ही निगल लेगी?
राजनीतिक जोखिम:
महिलाओं का गुस्सा जो महिलाएं इस योजना की बदौलत सरकार को सत्ता में लाईं, वही इसे बंद होने या वादों के टूटने पर सरकार के खिलाफ हो सकती हैं। विपक्ष पहले से ही इसे “लूटली बहना योजना” कहकर तंज कस रहा है, और अगर कोष की कमी या अन्य कारणों से योजना में कटौती हुई, तो यह भाजपा के लिए भस्मासुर बन सकता है। महाराष्ट्र और झारखंड जैसे राज्यों में भी ऐसी योजनाओं ने सत्ता के उतार-चढ़ाव को प्रभावित किया है, जो एक सबक है।क्या होगा भविष्य?लाड़ली बहना योजना की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि सरकार इसे आर्थिक रूप से टिकाऊ कैसे बनाती है। अगर राशि को कौशल विकास और स्वरोजगार से जोड़ा जाए, तो यह महिलाओं के लिए वरदान बन सकती है। लेकिन अगर यह केवल वोट बैंक की राजनीति तक सीमित रही, तो भस्मासुर का खतरा साकार हो सकता है। एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर, हमें उम्मीद करनी चाहिए कि यह योजना मध्यप्रदेश के लिए सशक्तिकरण का आधार बने, न कि विनाश का कारण।आप क्या सोचते हैं? क्या लाड़ली बहना योजना मध्यप्रदेश के लिए भस्मासुर बन सकती है? अपनी राय कमेंट में साझा करें!
