✍️ रिपोर्ट: राजेन्द्र देवड़ा, स्वतंत्र पत्रकार | स्थान: आलोट, जिला रतलाम

बरखेड़ा कला चंबल नदी पर बना पुल आज हर गुजरने वाले से यही सवाल कर रहा है — क्या मैं इतना ही टिकाऊ था? सात साल पहले जिस पुल को लाखों की लागत से बनाकर जनता को सौंपा गया था, आज उसकी सड़कें उखड़ चुकी हैं, और लोहे के सरिए बाहर आकर सीधे आम जनता की ज़िंदगी पर खतरा बन चुके हैं।
ये सिर्फ एक ब्रिज नहीं, एक उदाहरण है — कि कैसे सरकारी योजनाएं कागजों पर मजबूत होती हैं और ज़मीन पर खोखली।

कहानी एक पुल की नहीं, सिस्टम की है
बरखेड़ा कला स्थित यह चंबल ब्रिज प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) के तहत 713.54 लाख रुपए की लागत से बनाया गया था। इसका निर्माण कार्य 12 अप्रैल 2017 को शुरू हुआ और 12 अप्रैल 2019 को पूरा कर लिया गया। इस पुल की लंबाई 300 मीटर है, जिसमें 10 स्पान (प्रत्येक 30 मीटर) बनाए गए हैं।
पुल की गारंटी अवधि 12 अप्रैल 2024 को समाप्त हो चुकी है, और इसके तुरंत बाद पुल की हालत दिनों-दिन बिगड़ने लगी है।
आज जब कोई वाहन पुल से गुजरता है, तो लोहे के बाहर झाँकते सरिए और उखड़ी हुई परतें किसी अनहोनी की दस्तक जैसी लगती हैं।
लापरवाही या साज़िशन भ्रष्टाचार?
पुल की हालत देखकर यह साफ समझा जा सकता है कि निर्माण में कहीं न कहीं गड़बड़ी हुई है।
- सड़क की परतें उखड़ना सामान्य बात नहीं है
- लोहे के सरिए बाहर आना एक खतरनाक संकेत है
- गारंटी अवधि के तुरंत बाद खराबी होना सवाल खड़े करता है
तकनीकी जानकारों का मानना है कि यदि सामग्री और निरीक्षण में पारदर्शिता होती, तो पुल इतनी जल्दी जर्जर नहीं होता।
रोज़ाना हज़ारों वाहन और जान का जोखिम
यह ब्रिज आलोट-मंदसौर मार्ग को जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण संपर्क सेतु है। यहां से रोज़ाना हज़ारों वाहन—स्कूल बसें, एम्बुलेंस, ट्रैक्टर, ट्रक—गुजरते हैं।
वर्षा ऋतु में पानी भरने पर यह पुल फिसलन भरा और जानलेवा बन जाता है। अगर समय रहते इसकी मरम्मत नहीं की गई, तो कोई बड़ा हादसा कभी भी हो सकता है।
जनप्रतिनिधियों की चुप्पी क्यों?
आश्चर्य की बात यह है कि इस गंभीर मुद्दे पर क्षेत्रीय सांसद अनिल फिरोजिया और विधायक चिन्तामणि मालवीय अब तक चुप हैं।
लोगों को उम्मीद थी कि इतने महंगे और प्रमुख पुल की निगरानी में गंभीरता होगी। लेकिन अब सवाल उठता है —
क्या जनता की जान की कीमत फाइलों में दब जाएगी?
जनता की मांग क्या है?
अब क्षेत्रीय जनता के मन में कुछ स्पष्ट माँगें हैं:
- पुल की उच्चस्तरीय तकनीकी जांच हो
- निर्माण कार्य में दोषी एजेंसी पर कार्रवाई हो
- ब्रिज की मरम्मत तत्काल प्रारंभ की जाए
- भविष्य में निर्माणों की निगरानी के लिए स्थानीय जनसुनवाई प्रणाली लागू हो
भ्रष्टाचार की सड़ांध अब बदबू देने लगी है
यह पुल अब सिर्फ जर्जर नहीं, बल्कि भ्रष्ट व्यवस्था का “मौन गवाह” बन गया है। इसकी दरारों में छुपे हैं बजट के खेल, घटिया सामग्री, बिना निरीक्षण के अप्रूवल, और मौन प्रशासकीय स्वीकृति।
यह आवाज़ अब उठानी होगी। नहीं तो कल जब हादसा होगा, तब जांच नहीं, सिर्फ पश्चाताप बचेगा।
निष्कर्ष: जवाब चाहिए, जुबान नहीं
बरखेड़ा चंबल ब्रिज की स्थिति बताती है कि सरकारी योजनाएं सिर्फ लोकार्पण के दिन तक ही चमकती हैं। उसके बाद चाहे सड़क उखड़े या पुल टूटे — किसी को फर्क नहीं पड़ता। फर्क तब पड़ेगा जब जनता सवाल पूछेगी। और अब वक्त आ गया है कि जनता बोले — “हमें जवाब चाहिए, जुबान नहीं!”
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