गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली में ‘जेएंडके एंड लद्दाख थ्रू द एजेस’ नामक पुस्तक का विमोचन किया, जिसमें कश्मीर और लद्दाख के समृद्ध और विविध इतिहास को बड़े विस्तार से प्रस्तुत किया गया है। इस मौके पर उन्होंने कश्मीर और लद्दाख की ऐतिहासिक महत्ता और इनके भारत से गहरे जुड़ाव के बारे में कई महत्वपूर्ण बातें साझा की। शाह का कहना था कि कश्मीर का नाम कश्यप के नाम पर रखा जा सकता है, और उन्होंने इतिहासकारों से अपील की कि वे प्रमाणों और तथ्यों के आधार पर कश्मीर का इतिहास लिखें, बजाय इसके कि किसी विशिष्ट राजनीतिक या वैचारिक दृष्टिकोण से इतिहास को मोड़ा जाए।
कश्मीर का भारत से अभिन्न संबंध
गृह मंत्री अमित शाह ने कश्मीर के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को समझाते हुए कहा कि कश्मीर और भारत का संबंध न केवल ऐतिहासिक बल्कि भावनात्मक भी है। उनका मानना था कि कश्मीर कभी भी भारत से अलग नहीं हो सकता। उन्होंने उदाहरण के तौर पर लद्दाख की बात की, जहां समय-समय पर हुई गलतियों को ठीक करने की कोशिश की गई है। शाह ने कश्मीर के भारत में विलय को सिर्फ भौगोलिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण बताया। उनका कहना था कि कश्मीर में भारतीय संस्कृति की नींव पड़ी थी। यहां के शंकराचार्य मंदिर, सिल्क रूट, और सूफी, बौद्ध और शैल मठ जैसे धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्रों का जिक्र करते हुए उन्होंने यह स्पष्ट किया कि कश्मीर भारतीय सभ्यता का अभिन्न हिस्सा रहा है और हमेशा रहेगा।
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अनुच्छेद 370 की समाप्ति और कश्मीर में बदलाव
अमित शाह ने इस दौरान अनुच्छेद 370 और 35A की समाप्ति को कश्मीर में सुधार का एक बड़ा कदम बताया। उन्होंने कहा कि ये अनुच्छेद कश्मीर को भारत के बाकी हिस्सों से जोड़ने में रुकावट डालते थे, और इनके कारण कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद की जड़ें मजबूत हो गई थीं। शाह ने पीएम मोदी का धन्यवाद किया, जिन्होंने इन अनुच्छेदों को खत्म कर कश्मीर में विकास की नई राह खोली। अब कश्मीर की जनता देश के अन्य हिस्सों से जुड़ी नई संभावनाओं का लाभ उठा रही है, जो पहले कभी संभव नहीं था। कश्मीर का विकास अब किसी रोक-टोक के बिना तेजी से हो रहा है।
भारत की भू-सांस्कृतिक पहचान
भारत के भू-सांस्कृतिक अस्तित्व पर बात करते हुए शाह ने बताया कि भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है, जिसकी सीमाएं सिर्फ भू-राजनीति से नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर से भी परिभाषित होती हैं। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी, गांधार से लेकर ओडिशा और बंगाल से असम तक, भारत की एकता हमारी संस्कृति के धागों से बंधी है, न कि केवल सीमा रेखाओं से। उनका कहना था कि भारत की पहचान सिर्फ एक भू-राजनीतिक इकाई के रूप में नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक राष्ट्र के रूप में बनती है। यह हमारी प्राचीन सभ्यता का हिस्सा है, जो समय की कसौटी पर कड़ी टक्कर से भी नहीं टूट सकती।
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कश्मीर और लद्दाख का 8000 साल पुराना इतिहास
अमित शाह ने ‘जेएंडके एंड लद्दाख थ्रू द एजेस’ नामक पुस्तक के विमोचन पर बताया कि इसमें कश्मीर और लद्दाख का 8000 साल पुराना इतिहास समाहित किया गया है। शाह ने इसे कश्मीर और लद्दाख की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्ता को सही तरीके से समझाने का प्रयास बताया। उन्होंने बताया कि कश्मीर में बौद्ध धर्म का प्रभाव, संस्कृत का प्रयोग, और शंकराचार्य के योगदान को देखते हुए यह सिद्ध होता है कि कश्मीर हमेशा से भारत का हिस्सा रहा है। साथ ही, शाह ने यह भी कहा कि कश्मीर नेपाल से लेकर अफगानिस्तान तक की बौद्ध यात्रा का अभिन्न अंग रहा है, और इसने भारतीय संस्कृति को एक नए दिशा में आकार दिया है।
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कश्मीर की विविधता और भाषा की अहमियत
अमित शाह ने कश्मीर की विविधता और यहां बोली जाने वाली भाषाओं के महत्व को भी रेखांकित किया। उन्होंने पीएम मोदी के दृष्टिकोण की सराहना की, जिन्होंने कश्मीर की विभिन्न भाषाओं को महत्व देने की दिशा में कई कदम उठाए। पीएम मोदी ने सुनिश्चित किया कि कश्मीर में बोली जाने वाली हर भाषा को सम्मान मिले और उसे संरक्षित किया जाए, ताकि कश्मीर की सांस्कृतिक पहचान बनी रहे।
निष्कर्ष
अमित शाह का यह भाषण कश्मीर और लद्दाख की सांस्कृतिक धरोहर और ऐतिहासिक महत्व को गहरे तरीके से समझने का अवसर प्रदान करता है। उनका कहना था कि कश्मीर और लद्दाख की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्वता का अनदेखा नहीं किया जा सकता। इन क्षेत्रों का भारत के साथ गहरा सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और भावनात्मक जुड़ाव है, जिसे किसी भी राजनीतिक स्थिति से अलग नहीं किया जा सकता। शाह ने इस दौरान यह भी बताया कि कश्मीर और लद्दाख के इतिहास को सही दृष्टिकोण से समझने की जरूरमित शाह ने कश्मीर की भाषाओं को नया जीवन देने के लिए पीएम मोदी का धन्यवाद किया। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी ने कश्मीर की भाषाओं को संरक्षित करने और उनका सम्मान करने के लिए कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया। शाह ने यह भी कहा कि मोदी सरकार ने कश्मीर में बोली जाने वाली हर भाषा को महत्व देने और उसे बढ़ावा देने का एक ऐतिहासिक कदम उठाया है, जिससे क्षेत्रीय भाषाओं और संस्कृतियों को पुनर्जीवित किया जा सके।
समाप्ति
अमित शाह का यह भाषण कश्मीर और लद्दाख की सांस्कृतिक धरोहर और ऐतिहासिक महत्व को उजागर करने के साथ-साथ यह भी बताता है कि देश की एकता केवल भौतिक सीमाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहरों से भी जुड़ी हुई है। शाह का कहना था कि कश्मीर और लद्दाख का इतिहास भारत की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है, और यह हमारी साझा पहचान का प्रतीक है।त है, ताकि आने वाली पीढ़ियां इनकी महत्ता को समझ सकें और इसे संरक्षित कर सकें।
अमित शाह ने कश्मीर और लद्दाख के 8000 साल पुराने इतिहास पर पुस्तक का विमोचन किया
गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली में ‘जेएंडके एंड लद्दाख थ्रू द एजेस’ नामक पुस्तक का विमोचन किया, जिसमें कश्मीर और लद्दाख के समृद्ध और विविध इतिहास को बड़े विस्तार से प्रस्तुत किया गया है। इस मौके पर उन्होंने कश्मीर और लद्दाख की ऐतिहासिक महत्ता और इनके भारत से गहरे जुड़ाव के बारे में कई महत्वपूर्ण बातें साझा की। शाह का कहना था कि कश्मीर का नाम कश्यप के नाम पर रखा जा सकता है, और उन्होंने इतिहासकारों से अपील की कि वे प्रमाणों और तथ्यों के आधार पर कश्मीर का इतिहास लिखें, बजाय इसके कि किसी विशिष्ट राजनीतिक या वैचारिक दृष्टिकोण से इतिहास को मोड़ा जाए।
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