एक ऐसा किरदार निभाया जिन लोगों के दिलों पर आज भी अमित छाप छोड़ गया है नेगेटिव रोल के बावजूद भी काफी प्रभावी किरदार रहा गंगापुत्र भीष्म और वासुदेव कृष्ण के बाद सबसे प्रभावी किरदार जो महाभारत में रहे वह मामा शकुनि का किरदार रहा,, इस नकारात्मक सोच और नकारात्मक किरदार के पीछे की कहानी क्या है कहानी शुरू होती है जब गंगा पुत्र भीष्म गंधार नरेश से उनकी बेटी गांधारी का हाथ धृतराष्ट्र के लिए मांगते हैं क्योंकि धृतराष्ट्र नेत्रहीन थे तो शकुनी को गंगापुत्र भीष्म की एक बात और यह प्रस्ताव काफी बुरा लगा वह अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे और एक नेत्रहीन के साथ उसका विवाह नहीं करना चाहते थे परंतु गांधारी ने गंगापुत्र भीष्म के इस प्रस्ताव को स्वीकार किया और उनका मान रखा और स्वयं अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर आजीवन इस दुनिया को ना देखने का संकल्प किया यह अपमान या यह कहें कि यह पीड़ा गंधार कुमार शकुनी से बर्दाश्त नहीं हुई और उन्होंने प्रण किया कि मैं इस अपमान का बदला गंगापुत्र भीष्म से अवश्य लूंगा उन्होंने कभी भी कौरव पांडव में एकता नहीं होने दी आजीवन उन्होंने नफरत और परिवार को तोड़ने का कार्य किया और अंत में कुरुक्षेत्र में जाकर एक बहुत बड़े नरसंहार के बाद स्वयं भी अपने प्राण त्याग दिए किंतु अपने मन की उस नफरत उस गाना को वह समाप्त नहीं कर पाए उससे वह बाहर नहीं निकल पाए,, अंत में आशय यह है कि यदि हम किसी को बर्बाद करने के लिए मन में छल कपट अहंकार या नफरत पालते हैं तो उसमें सामने वाले के साथ-साथ स्वयं हम भी डूब जाते हैं हम अपने जीवन में स्वयं खुश रहना आगे बढ़ना या एक सामान्य जीवन जीना भूल जाते हैं क्योंकि नफरत ऐसी दो धारी तलवार है जो दोनों और से काटती है इस पात्र से इस चरित्र से इस कहानी से सीखने की आवश्यकता है वर्तमान समय में कई ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे जो यह कहते सुनाई देते हैं कि मैं तुझे जीने नहीं दूंगा लेकिन स्वयं वह भी देखें कि दूसरों से घृणा करने दूसरों से नफरत करने दूसरों के जीवन में परेशानियां लाने के साथ-साथ वह स्वयं अपना सुखमय जीवन तो नहीं त्याग रहे खैर यह तो हो गई मेरी बात,, आज श्री गुफी पेंटल साहब हमारे बीच नहीं है मैं हृदय की गहराइयों से एक सर्वश्रेष्ठ कलाकार को नमन करता हूं उनके डायलॉग मुझे हमेशा याद रहेंगे जिसमें से मेरा फेवरेट डायलॉग यह है कि ,,,कभी-कभी ना बोलना भी राजनीति है